Tuesday, January 28, 2020

जिंदगी

" पता है ? मैंने खुद से मुहब्बत करना शुरू कर दिया है |"

नए नवेले आशिक की मानिंद मैने चहकते हुए उसे सुनाया | उसने संजीदा तरीके से बड़े गौर से मेरे चेहरे का भरपूर जायजा लिया और फिर चुपचाप अपनी चाय की चुस्कियों मे वापस रम गया | वो हमेशा से ऐसा ही करता था मेरे साथ | ऊपर से मेरे मजे लेने का कभी कोई मौका भी नहीं छोड़ता था वो |

मेरी खीज़ बढ़ती जा रही थी और वो मेरे नए ख्याल पे कुछ ध्यान ही नहीं दे रहा था | साला, मेरे चेहरे की चमक और दिल की खनक कुछ और बयान कर  रहे थे और उसे कोई मतलब ही नहीं था | मैंने एक कोशिश और मारी |

" पता है ? मैं अब बहुत खुश रहता हूँ | मैने गाने भी गाने शुरू कर  दिया ,वो भी खुशी वाले | रोज karaoke पे रियाज भी करता हूँ  |"

उसके भी मेरी तरह अधपके बाल हैं ; बस उड़े नहीं हैं | वो हमारे  जवानी के दिनों मे खूब गाया करता था | आवाज बड़ी शानदार थी उसकी | मुझे लगा कि अब तो शाबासी मिल के ही  रहेगी | अकेला दोस्त है मेरा , मेरे हर सुख -दुख का साथी | उसकी राय बहुत मायने रखती थी मेरे लिए | चाय की आखिरी घूंट पीकर उसने कप परे सरका दी | 

अब तो अति हो गई | मेरा पारा चढ रहा था | लेकिन साले ने ज़िन्दगी की मेरी हर कहानी झेली है , सो हर नखरे बनते हैं उसके | और किसको सुनाऊँगा ? एक वो ही तो इत्ते करीब से जानता है मुझे | मेरे  नमकीन और मीठा एक साथ खाने की तलब और आदत बस वही तो समझता है | मैंने फिर से हँसता सा चेहरा बनाया |

" पता  है ? मैने खुद पर समय भी देना शुरू कर दिया है | Morning Walk भी चालू कर दिया है , Gym भी जाता हूँ  रोज | "

मैं सूने आकाश से बाते कर रहा था | सामने से कोई प्रतिक्रिया ही नहीं |कोई मतलब ही नहीं रह गया है  इसे मुझसे | साला ,बड़ा आदमी बन  गया है | इस बार मैं जोर से चीखा -

" पता है भो ... वा ..? मैं अपनी खुशी बाँट रहा हूँ और तू  चू .........
किए जा रहा है | कुत्ते , मैं अब ज़िन्दगी जी रहा हूँ ....
पता  है  मा ......? मैं कल बारिश मे नहाया भी था | फिर भुट्टे भी खाने  गया था ......
पता है चू ..... ? मुझे उस मीठे - खारे वाले दुकान मे फिर से बार-बार जाने का मन करता है .....
पता है ? मुझे एक बार फिर से इश्क हो गया है ...... "

इस बार वो मुस्कराया ! पिछले पच्चीस सालों से मैं इस कमीनगी वाली मुस्कान देखता आया हूँ | आगे का वाकया पता था मुझे ; अब वो मेरी अच्छे से लेगा | मैने बिल्कुल ही मासूम सा चेहरा बना लिया और पूर्ण समर्पण की मुद्रा मे उसकी ओर देखा | मेरे इस पैतरे पर भी उसके तेवर  नहीं बदले | कुछ क्षण यूँ ही बीते | अचानक उधर से गूगली आई  -

" पता है ? तू ऐसे बात करता है ,तो जीता-जागता सा लगता है | अबे  चू ...., तू तो बार-बार मरता रहता था और अपनी लाश को चिता पे लिटाकर खुद जलाते रहता था .....

पता है ? तू अब फिर से ज़िन्दा हो गया  है ......."

# ज़िन्दगी

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