Sunday, January 26, 2020

टिक टिक घड़ी - 4

आग की तरह पूरे गाँव में यह बात फैल गई कि मास्साब का बेटा 'सस्ता' ( बिहार के अद्वितीय एवं खालिस उज्जड़पन में 'सच्चिदानंद' का पुकारू संस्करण) घर छोड़कर भाग गया है। शाम होते-होते घर के आगे भीड़ लग गई। सन् 1946-47 का समय था, सो लोगों की creativity परवान पर थी। किसी ने गांधी जी का चेला बनवा दिया, तो किसी ने आजाद हिंद फौज join करवा दी। एकाध मजमा लूटने वालों ने माहौल बनाने के लिए प्रत्यक्षदर्शी बन उन्हें सिमरिया घाट ( गंगा नदी) की ओर जाते हुए बता दिया! घर के अंदर औरतें रोने पर बदस्तूर लगी हुई थी।
माहौल पूरा गमगीन और सनसनीखेज बन चुका था, लेकिन इन सब से निस्पृह थे - ' कुल दो इंसान '। दादा जी को अपने बेटे के बारे में भलीभांति मालूम था; उनकी फितरत से वह वाकिफ थे। "पढ़ाई में अच्छा है, और पढ़ाई करना चाहता है " - बेटे के मन की इस इच्छा को तो वो जानते ही थे। साथ ही कितना डरपोक है, यह भी उन्हें बखूबी मालूम था। तो लड़ने-झगड़ने या सेना join करने वाले options को उन्होंने बहुत पहले ही मन मे rule-out कर दिया। अपने दिए हुए संस्कारों और अपने होनहार बेटे पर पूरा भरोसा था, इसीलिए गंगा में डूब मरने की theory भी अस्वीकार कर दी।
दूसरा इन सब से अनजान गांव से 15-16 किलोमीटर दूर बेगूसराय के बीपी हाई स्कूल की बिल्डिंग के अंदर था। शाम में छुट्टियों के बाद सभी चले गए, लेकिन एक लड़का अभी भी उसी प्रांगण में था। लड़के का सौभाग्य मानिए या विधि का विधान, सारा काम निपटा कर अपने आवास की ओर जाते हुए प्रिंसिपल साहब की नजर इस लड़के पर पड़ गई। थकान, भूख और डर - तीनों के कारण लड़के का चेहरा कुम्हलाया हुआ था। दो-चार सवाल पूछे तो, प्रिंसिपल साहब को सारा माजरा समझते देर न लगी। पहले तो भरपेट भोजन करवाया, फिर आधे घंटे का शैक्षणिक इंटरव्यू लिया। एक कुशल प्रशासक की तरह मामला हैंडल करते हुए लड़के को तत्काल तो अपने पांचवें में पढ़ रहे बेटे को पढ़ाने पर लगा दिया और रात में खाना खाने के बाद सरसों तेल से अपने शरीर की मालिश करने का फरमान जारी कर दिया। सुबह पौ फटते ही चपरासी प्रिंसिपल साहब के आदेशानुसार महना गाँव के मास्टर फौजदार सिंह के घर की ओर रवाना हो गया।
" मुसाफिर लोग, ठंढ बढ़ रहा है। एक कप चाय और पीजिएगा ? "
उनके जवाब की बिना प्रतीक्षा किए हुए कमरे के दरवाजे की ओर मुँह कर बाबूजी जोर से बोले- "एक बार और चाय ले आओ।"

ब्रह्म मुहूर्त शुरू हो चुका है। घड़ी की छोटी वाली सुई चार के अंक को पार कर चुकी है, लेकिन बाबूजी की मजलिस परवान पर है। कौन कहेगा कि इतना कम बोलने वाले के पास किस्सों का इतना भंडार है!

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