मैं भागता फिर रहा हूँ , उससे बचता फिर रहा हूँ | वो मुझे पर्दाफाश करना चाहता है और मैं उससे छिपता फिर रहा हूँ | उससे नजरें मिलाने की ना तो चाहत बची है और शायद ना हिम्मत | हर लम्हात में बस यही ख्वाहिश रची-बसी है कि वो दुनियाँ के किसी दूसरे कोने मे अपनी ज़िन्दगी जी रहा हो और मुझे अपनी वाली से मशक्कत करने दे | चाहता हूँ कि उसकी नजर तक ना पड़े मुझपे ; अब वो बिल्कुल ही बर्दाश्त नहीं हो पा रहा| उसकी छाया,उसके ख्याल ,उसकी हर क्षण रूबरू होने की ख्वाहिश मुझे डरा रहे हैं |
मैंने उसे बारम्बार बोल रखा है कि अब बड़ा हो गया हूँ ; अपनी लड़ाई खुद लड़ सकता हूँ | इतना तक बोला कि दुनियावालों से लड़ने के लिए मुझे दुनियावी हथियारो की जरूरत पड़ेगी; तेरे फलसफे , तेरी रूहानी बातें, तेरे किताबी विचार काम ना आएंगे | उसकी दुनियाँ शायद बहुत अच्छी होगी ,तब तो वो इतना soft है, normal है , unpolluted है और उसका काम चलता जा रहा है | And he is successful indeed!
और मैं अपनी दुनियाँ का लुटा-पिटा इंसान, जिसने खुद को खुश रखने के लिए अब सफलता के सारे पैमानों को नकारना शुरू कर दिया है | उस से रूबरू होने पर अब inferiority complex अन्दर आने लगती है मेरे ; शायद उस से अब jealous फील करने लगा हूँ |
एक जगह का झगड़ा हो ,तब तो बताऊँ | सब जानते हैं कि public मे अपने emotions, feeling, reactions express करने मे guarded होना चाहिए और मैं इसमे अब trained भी हो गया हूँ |और ठीक उसी जगह वो कानो मे सरगोशियां कर रहा होता है कि live your emotions, express yourself fully, react your self - अब ये भी कोई बात हुई भला | ऑफिस मे हमें professionaly behave करना चाहिए ; Its matter of carrer and growth और सबसे important तो ये है कि दाल-रोटी का भी जुगाड़ वहीं से होता है | और वो ज्ञान पेलता है कि तुम भी इंसान , वहाँ काम करने वाले भी इंसान , फिर simply इंसान रहो ना ; कुछ और क्यों बन जाते हो | अब इन्हे कौन समझाये दुनियावी तिलस्म के जंगल मे भूखे शेर का तो एक बार विश्वास कर लो, पर ऑफिस मे ऐसी गलती ना करना, जहाँ zero-sum-game सारे rule define करते हैं - एक का नुक़सान ही दूसरे का फायदा है !
लिस्ट बड़ी लम्बी है , फुरसत मे ही पूरी हो पाएगी | अजीब सा संघर्ष है ,ऊहापोह बड़ी अजीब है | मैं case-specific deal करना चाहता हूँ , शायद compelled हूँ इसके लिए | और वो generalised treatment की बात करता है ; साले ने ज्यादा Marx पढ़ रखा है ,लगता है ! ऊपर से साला मेरे ही जैसे कपड़े पहनता है ,मेरी ही कद -काठी का है, दिखता भी मुझ सा ही है | हर रोज ऑफिस के लिए तैयार होते वक़्त उसे कमरे मे बंद कर आता हूँ , पर कौन सा जादू जानता है वो ,कि हर जगह पहुँच जाता है , जहाँ कहीं भी मैं रहता हूँ | यार , परेशान हो गया हूँ तुझसे और तेरे इस कृष्ण बनने की कैफियत से | मुझे तो तू अर्जुन ही रहने दे , और वो भी गीता -ज्ञान से पहले वाला |
# ऊंघते-अनमने विचार
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