आज का मसीहा ,
लटका होगा कहीं सलीब पर ,
और माँग रहा होगा दुआयें -
उनके लिये ,
जिन्होने इस हाल पर उसे पहुँचाया ..।
क्योंकि -
उन्ही की बदौलत ,
ये लोहे की जंजीरें ,
ये कीलें , ये सलीब ,
जिन्दा घाव , टीस उठाता दर्द ,
और इन्से मिलने वाली मौत -
उसकी अपनी और सिर्फ अपनी हो सकी ..।
Sunday, June 10, 2007
आज का मसीहा

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