अस्तित्व - बोध
टुकड़ो में बँटती जिन्दगी / अस्तित्वहीन होता अन्तस /
एक सूनापन ; एक खालीपन /
फिर भी जिये जा रहा हूँ ........,
नियति से बँधी /
एक परिणति की आस में /
साँस लिये जा रहा हूँ .......... ।
खोज जारी है,तलाश जारी है,
अपने पहचान की , एक इन्सान की .... ।
दिल में टीस सी उठती है /
रोता हूँ , कराह पाता नहीं /
बेदखल हूँ / अपने ही घर से /कोने मे दुबके बूढे की तरह/
उखड़ी साँसों को थामता हूँ -
आवाज ना कोइ आने पाए ,
कहीं कोई नींद ना खुल जाए .....।
खोज जारी है,तलाश जारी है,
अपने पहचान की , एक इन्सान की .... ।
कदम ठिठकते हैं / चेतना की गाँठ खुलती है /
टुकड़े पड़े हैं सामने /
तलाश रहा हूँ एक आस लिए -
शायद मेरे नाम का टुकड़ा कहीं दिख जाए,
पल-भर को ही सही ,
मुझे मेरा अस्तित्व-बोध करा तो जाए......।
खोज जारी है,तलाश जारी है,
अपने पहचान की , एक इन्सान की .... ।
Sunday, June 10, 2007
अस्तित्व-बोध
An engineer(IITian) by qualification, educationist by profession and mythologist by passion. He fathoms up to the deeper roots of mythological stories and wisdom enshrined in our Sanatana dharma texts like Vedas, Puranas, Epics and specially Gita. He is a naturally gifted speaker and enthrall the audience with the waves of his rhythmic intonation and way of story-telling.
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