परछाईयों का शहर /
तन्हाई का सफर /हमसफर ढूँढा /
धूल सने हाथों में सिफर उभर आया ।
समझ गया -
साये कभी औरों के नहीं होते ।
देते हैं गवाही मेरे होने की,
जो घटती-बढती छाया में अपना कद नापता हूँ ,
सपनों की पगडंडियों पर चलता ,
किसी लौ में अपना वजूद ढूँढता हूँ ।
Sunday, June 10, 2007
वजूद

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