Monday, June 11, 2007

शहर और आदमी

एक मुर्दा शहर में/
साँस लेती हुई
लाशें रहा करती थीं ।

एक रोज /
मौत भरी फिजां से तंग आकर
सोचा सबने -
ये मरा हुआ शहर छोड़ दें
कहीं और जा /कोई जिन्दा शहर बसाएँ ।

एक जगह दिखी / निर्जन, वीरान फिजां मे
जिन्दगी मुस्करा रही थी......
सब आ वहीं बस गये ।

सुना /
फिर
वो शहर भी मर गया था।

2 comments:

Archana Gangwar said...

wah ...bahut khoob

Anita kumar said...

srawan ji yeh jinda laashein sirf ek ya do shahar mein nahi poore sansaar mein hain ...bahut khoob likha hai