एक दुआ कबूल हुई....
किया था जिसे/किसी और ने/
किसी और के लिए।
खुदा जगा / तैयार हुआ/ हाथ
नेमतों के बोरे मे डाले
और / दोनो मुठ्ठियाँ भर/
निकल पड़ा-
’हैव्स’ की बस्ती मे/ किसी घर के/
छप्पर की छाती चीर/
अपने हाथ खाली करने को।
खुदा था;जमीं के उपर का था/
और क्या कहूँ?
जमीं के उपर चलता भी था।
मंजिल देखने को/नीचे निगाह दौड़ाई,
दिखा जो/
हिकारत से नजरे वापस फिर आई-
एक पिलपिलाती, गंधाती
अपने ही बच्चों से बिलबिलाती/
टूटे झोपड़े,मरियल लोथड़े,
गरीबी थी,बेचारगी थी,
एक अन्चाही सी अवारगी थी-
एक’हैव्स-नॉट’की बस्ती
कातर निगाहों से उपर देख रही थी,
और अपने आप ही/खुद के लिए/
दुआएँ भी माँग रही थी।
कोफ्त हुई देखनेवाले को/
इस जिल्लत को देखकर,
पात्रता की कसौटी कसी/उसने मुठ्ठी भींच ली/
और कसकर।
पर नेमते तो सूखी रेत होती हैं,
जितना जकड़ो/ कसमसा उठती है,
कैद से फिर निकल पड़ती हैं-
सो खुदा की/
अँगुलियों के पोर के
चन्द झरोखे खुले / और
नेमते कुछ/
इधर-उधर छिटक गई।
खुदा को कुछ आभास हुआ,
मुठ्ठी हल्की होने का भास हुआ,
पर जो सब कुछ ना कर सके,
वो खुदा ही क्या हुआ-
जमीन पर पहुँचने के पहले/
सारी छिटकी नेमते/
सिफ़र हो चुकी थी।
मै भी खुदा के हाथ से छिटकी एक नेमत हूँ............।
Monday, December 24, 2007
खुदा की नेमते
An engineer(IITian) by qualification, educationist by profession and mythologist by passion. He fathoms up to the deeper roots of mythological stories and wisdom enshrined in our Sanatana dharma texts like Vedas, Puranas, Epics and specially Gita. He is a naturally gifted speaker and enthrall the audience with the waves of his rhythmic intonation and way of story-telling.
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1 comment:
आपने अपने विषय मे जो लिखा है,दिल इसी तरह सोचता है.......तभी तो कलम हाथ में होती है.
खुदा की नेमत बहुत अच्छी लगी
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