(१) चेहरा देखने की है अब फुर्सत कहाँ ,
पता याद रखने की भी जरूरत नही ।
सुना है अपने शहर का नाम भी बदल रहा है।
(२) अभी थम जाओ,साँसे लेना फिर ढ़ेर सारी,
हर नदी पर अब तो बाँध बन ही गए हैं ।
एक को छोड़ सब कह रहे थे, future secure कर लो ।
(३) तन्हा लगता है अकेले चलने पर
साथ होगी तो बोझ हो जाएगा ।
कहीं तुम याद तो नही ?
(४) अखबार उठाया, पापा ने डाँटा, कॉपी फाड़ी, मम्मी दौड़ी आई
कागज मिल नहीं पाए, ना पानी के जहाज बने, न उपर वाले ।
अब भी सफर मे कागज ही चूका करते हैं !
(५) सपने डाले,छौंक manners का,उसे भी डाल दिया,
आग नीचे जल रही थी, वो बेचारा पिघल रहा था ।
ऐसे ही तो घास-फूस का पेट्रोल बना होगा ।
(६) यूँ बच्चो सा क्यूँ करते हो? अब बड़े हो गये हो तुम!,
खेलने चलो , मैने असली गोली-बन्दूक निकाल ली ।
ज्यादा खेलने से बच्चे थक के सो जाया करते हैं!
(७) सूने रस्ते पथरीली आँखों मे उतर आए थे,
तिरंगा ओढ़े वो आया, पत्थर बह निकले ।
मेरे गाँव मे भी सूखे के बाद बाढ़ आई थी।
Friday, January 11, 2008
कुछ त्रिवेणियाँ

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3 comments:
"सूने रस्ते पथरीली आँखों मे उतर आए थे,
तिरंगा ओढ़े वो आया, पत्थर बह निकले ।
मेरे गाँव मे भी सूखे के बाद बाढ़ आई थी।"
बहुत ही उम्दा और गूढ़ बात की है आपने ,श्रवण जी.
सहज वर्णन ....... आँखों के आगे घूम जाता है.
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